Yudhra Movie Review : एक औसत एक्शन फिल्म : नेशनल सिनेमा डे के मौके पर मैंने ‘युद्रा’ फिल्म देखी। सिर्फ 99 रुपये में टिकट मिलने की वजह से हॉल लगभग हाउसफुल था। लेकिन टिकट सस्ती हो, इसका मतलब यह नहीं कि फिल्म शानदार होगी। ‘युद्रा’ एक ऐसी फिल्म है जो कुछ पहलुओं में प्रभावित करती है, लेकिन कई मोर्चों पर निराश करती है। इस फिल्म में तीन मुख्य चीज़ें हैं – कहानी, एक्शन, और अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी का प्रदर्शन।
Yudhra Movie Review : एक औसत एक्शन फिल्म
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फिल्म की कहानी
‘युद्रा‘ की कहानी एक सामान्य बदले की कहानी है। बचपन में अपने माता-पिता को खोने वाला हीरो बड़े होकर उनके हत्यारों से बदला लेने के लिए तैयार होता है। इस प्रकार की कहानियाँ हम पहले भी कई फिल्मों में देख चुके हैं। यहाँ कुछ नया नहीं है। माता-पिता की मौत के बाद, हीरो का गुस्सा और दर्द उसे एक हिंसक व्यक्ति बना देता है। इस गुस्से को फिल्म का केंद्रीय भाव बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन कहानी में ताजगी की कमी महसूस होती है।
पहले हाफ में फिल्म काफी खिंचती हुई महसूस होती है। बीच-बीच में गाने डाले गए हैं, जो फिल्म की गति को धीमा कर देते हैं। गानों का न सिर्फ कहानी से कोई खास संबंध है, बल्कि वे भावनात्मक प्रभाव भी नहीं छोड़ते। खासकर, इंटरवल तक पहुँचने में काफी वक्त लगता है और तब तक दर्शक ऊब सकते हैं। यह एक ऐसी कहानी है, जिसमें पहले से ही सब कुछ प्रेडिक्टेबल है – आप आसानी से समझ सकते हैं कि आगे क्या होने वाला है।
दूसरे हाफ में भी ज्यादा कुछ नया नहीं होता। कहानी में कुछ ट्विस्ट डालने की कोशिश की गई है, लेकिन वे भी इतने अनुमानित हैं कि कोई खास रोमांच नहीं पैदा करते। कुल मिलाकर, कहानी में नयापन और गहराई की कमी है। यह एक ऐसी कहानी है जो पहले भी कई बार देखी जा चुकी है।
एक्शन
अगर फिल्म की कहानी साधारण है, तो एक्शन इसके विपरीत काफी अच्छा है। एक्शन सीक्वेंस बहुत ही अच्छी तरह से शूट किए गए हैं। फिल्म के ट्रेलर से जितनी उम्मीद की थी, उससे कहीं ज्यादा बेहतर एक्शन देखने को मिलता है। हर एक्शन सीन में हीरो का गुस्सा और हिंसा स्पष्ट दिखाई देती है। फिल्म में लड़ाई के दृश्यों को बहुत ही सटीकता और तकनीकी कुशलता के साथ दिखाया गया है।
हालांकि, फिल्म के कई हिस्सों में एक्शन ही इसे बचाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि एक्शन के कारण ही यह फिल्म किसी हद तक देखने लायक बनती है। कई बार यह एक्शन फिल्म के प्लॉट को भी ओवरशैडो कर देता है, लेकिन चूंकि कहानी पहले से कमजोर है, इसलिए एक्शन का इतना प्रमुख होना शायद जरूरी भी था।
सिद्धांत चतुर्वेदी का प्रदर्शन
फिल्म में सिद्धांत चतुर्वेदी मुख्य भूमिका में हैं, और उनका प्रदर्शन सराहनीय है। उन्होंने अपने किरदार ‘राघव’ को बखूबी निभाया है। भले ही कहानी कमजोर हो, लेकिन सिद्धांत ने अपने अभिनय से फिल्म को संभालने की पूरी कोशिश की है। उनका ‘एंग्री यंग मैन’ अवतार दर्शकों को पसंद आ सकता है।
राघव का किरदार काफी हद तक फिल्म ‘किल’ में उनके द्वारा निभाए गए साइकोटिक किरदार जैसा है। लेकिन यहाँ उनका रोल बड़ा है और उन्होंने अपने एक्टिंग स्किल्स को पूरी तरह से दिखाया है। खासकर, उनका चेहरा और हाव-भाव फिल्म के हर एक सीन में उनके किरदार की गहराई को बखूबी दर्शाते हैं।
सिद्धांत का एक्शन भी काबिल-ए-तारीफ है। उन्होंने शारीरिक रूप से खुद को इस रोल के लिए अच्छे से तैयार किया है। चाहे वह लड़ाई के सीन हो, या इमोशनल दृश्य – उन्होंने अपने किरदार को गहराई और गंभीरता के साथ निभाया है। एक्शन सीक्वेंस में उनकी एनर्जी और फिटनेस भी तारीफ के काबिल है। हालांकि, फिल्म की कहानी कमजोर होने की वजह से सिद्धांत का शानदार अभिनय भी इसे एक यादगार फिल्म नहीं बना पाता।
फिल्म का संगीत और रोमांस
अब बात करें फिल्म के संगीत की। फिल्म में कई रोमांटिक गाने डाले गए हैं, जो कहानी के साथ मेल नहीं खाते। खासकर, पहले हाफ में दो गाने जबरदस्ती डाले हुए लगते हैं। यह गाने फिल्म की गति को धीमा करते हैं और कहानी से भावनात्मक जुड़ाव कम कर देते हैं। एक जगह पर तो फिल्म में ऐसा गाना आता है, जब हीरो अपने पिता की मौत का मातम मना रहा होता है। इस वक्त अचानक से एक रोमांटिक सॉन्ग डाला गया है, जो दर्शकों को थोड़ा असहज कर सकता है।
रोमांटिक गानों की गैरज़रूरत महसूस होती है। अगर इन्हें फिल्म से हटा भी दिया जाता, तो शायद फिल्म की लय बेहतर होती। इन गानों की न तो ज़रूरत है, न ही ये फिल्म के मूड के साथ फिट होते हैं। फिल्म में रोमांस का ट्रैक भी ज्यादा प्रभावी नहीं है। हीरो और हीरोइन के बीच का प्रेम संबंध सतही लगता है। इसमें गहराई या नयापन नहीं है, और यह सिर्फ स्क्रीन टाइम भरने के लिए ही डाला हुआ महसूस होता है।
सिनेमैटोग्राफी और निर्देशन
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। एक्शन सीन को खासकर बहुत ही कुशलता से फिल्माया गया है। लोकेशन्स भी अच्छी चुनी गई हैं, जो कहानी के साथ मिलकर फिल्म को एक विजुअल अपील देती हैं। लेकिन जहां एक्शन और लोकेशन्स को सराहा जा सकता है, वहीं फिल्म का निर्देशन कमजोर है। निर्देशक ने एक सामान्य कहानी को बहुत ही सामान्य तरीके से पेश किया है, जिससे फिल्म में कुछ नया या हटके महसूस नहीं होता।
फिल्म का निर्देशन कुछ जगहों पर थका हुआ लगता है, खासकर रोमांटिक दृश्यों में। यह निर्देशक की जिम्मेदारी थी कि वह कहानी में कुछ नया और अनोखा जोड़ते, लेकिन ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता। फिल्म का निर्देशन कहानी की कमजोरियों को ढकने में असफल रहा है।
फिल्म की कमजोरियाँ
फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है इसकी कहानी। आजकल की ऑडियंस बहुत ही समझदार है और इस प्रकार की प्रेडिक्टेबल स्टोरी लाइन उन्हें बांधने में असफल रहती है। यह एक ऐसी कहानी है जो हमने पहले भी कई बार देखी है। माता-पिता की मौत का बदला, हीरो का गुस्सा, और अंत में दुश्मनों को हराना – यह सब कुछ बहुत ही पुराना हो चुका है।
दूसरी बड़ी कमजोरी है फिल्म का रोमांस और गाने। फिल्म में जबरदस्ती रोमांस और गानों को ठूंसने की कोशिश की गई है, जो पूरी फिल्म की लय को तोड़ देते हैं। यह गाने और रोमांस फिल्म के कथानक से मेल नहीं खाते और न ही कोई भावनात्मक प्रभाव छोड़ते हैं।
फिल्म की कुछ अच्छी बातें
हालांकि फिल्म में कई कमजोरियाँ हैं, लेकिन कुछ अच्छे पहलू भी हैं। पहला है सिद्धांत चतुर्वेदी का अभिनय, जो पूरी फिल्म को संभालने की कोशिश करता है। दूसरा है फिल्म का एक्शन, जो बहुत ही कुशलता से फिल्माया गया है। एक्शन फिल्म के उन पहलुओं में से है जो इसे थोड़ा अलग बनाता है।
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निष्कर्ष
कुल मिलाकर, ‘युद्रा’ एक ऐसी फिल्म है जिसे एक बार देखा जा सकता है, अगर आप बहुत ज्यादा उम्मीदें लेकर नहीं जाते हैं। यह एक सामान्य बदले की कहानी है, जिसमें एक्शन अच्छा है, लेकिन कहानी और निर्देशन कमजोर हैं। सिद्धांत चतुर्वेदी का प्रदर्शन सराहनीय है, लेकिन फिल्म की कमजोरियों के कारण वह भी इसे एक यादगार फिल्म नहीं बना पाते।
अगर आप एक्शन फिल्मों के शौकीन हैं और बिना किसी नई कहानी की उम्मीद के सिर्फ एक्शन के लिए फिल्म देखना चाहते हैं, तो ‘युद्रा’ आपको पसंद आ सकती है। लेकिन अगर आप कुछ नया, अनोखा या गहराई वाली कहानी की तलाश में हैं, तो यह फिल्म आपको निराश कर सकती है।
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